शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2010

" हम न मरब मरिहै संसारा......."

'' फईज़ाबाद कै कबीर मना जाय वाले ''

" हम न मरब, मरिहै संसारा......."  की  तरह  जिये वालै

अवधी भाखा कै सुनाम-धन्न महान कवी

*'रफ़ीक शादानी '*

आखिरकार संसारा छोडै गए ''  

{ अज्ञात _ तिथि - माह - 1933 :: 2 - फरवरी - 2010 }
               
जन्म   तिथि अज्ञात  1933 ईo  मा   बर्मा कै [ आज कै  म्यांमार ]  एक अत्तार इमाम दीन के घर मा  एक  फूल जनमा , जौन   अवध  कै   जमीन  मा  जमावे  केबाद  जब  हियां यानि  'अवध  इलाका '  कै हवा-पानी -खाद पाइस तओ   आगे  चल कै '' अवधी भाखा '' कै खुसबू दूर-दूर तलक एस
 
फैलाइस  कि    अच्छे - अच्छे   उनके  मुरीद  हुई  गय | cccccccccccccccccccccccccccccccccc                cccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccccc
 कहै का ' रफ़ीक 'भाई  हसोड़  कवी /शायर   माना   जात   रहे होंय ,  पर  हर बात  का  हंसी- ठिठोली  मा   उड़ाय  देय कै  ई   गुन ,  सायद  उनमा   अपनै  जिनगी  कै परेसानियन,
 
:: एकै भाई  रहा  ऊ  अउर  दुई  लड़कन  मा एक लड़का  

दुइनो  चला गयें  अउर  रोज़ी-रोटी  कै  वासते  रोजै   

जूझब ::  
 आदि  कै मुकाबिला    करत-करत  पनप  गय
 
अउर   ' सदानी ' भाई  उहै  का  आपन  ताकत 

आपन औजार / हथियार   बनाय  लिहिन | cccc
 अक्सर  --- 
    ' गय जवानी  खेल ख़तम ',
             
     ' बुझ गय बाती  जौ तेल ख़तम '|

 " कहत-कहत   '' रफ़ीक  शादानी, वल्द 

इमामदीन    साकिन _ मुमताज नगर,

फईज़ाबाद,  उत्तरप्रदेस,  भारत,"

" ईस्वी सम्वत  2010   माह फरबरी 

तिथि  9 , का  खेला  ख़तम  कर , चिराग

कै बाती  बुझाय कै चल दिहिन |" 
 [ 12 -फरबरी - 2010   द्वारा  कबीरा  ]
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  12
    उदय u


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