बरस गयी बरस गयी रे बदरिया ,
कमरे माँ बैठब ऐसै ही रहा मुहाल,
बिजुरी जाय के बाद कै तौ पूछौ न हाल,
पंखौ गरम-गरम भपका मारे ड्रैगन के नाय ||
खुला कम्प्यूटर जो वोल्टेज लायी बिजुरिया,
चलै लाग की-बोरड पै फटाफट अंगुरिया ,
काओ लिखी सोचत बैठा रहेन खुजात खोपडिया,
फिर सोचेन लिखडाली इक पाती मा हाल गुजरिया||
बडन रामजुहार लिखेन,गेदाहरन दुलार लिखेन,
गरमी मा गेदाहरन संग मैइके बैठी उनका......?लिखेन,
मुस्तफा भाईयो गुज़र गए,मनी गए जयराम गए ,
जाने केकै बरी बा बचपन से पचपन तक कै साथी तमाम गए ||
मन उदास बा जल्दी आवा अचार कटहल भरवा-मिरचा लावा ,
तुहार हाल का बा ,गेहूं सरसों अच्छा-सस्ता पावा लदाय लावा ,
पैसा भेजाए देब घर कै घिउ जुगाड़ होए पाच किलो लेत आवा ,
कुछ होए या नहोए मन उदास बा तू जल्दी से जल्दी आवा ||
रविवार, 28 जून 2009
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आप कॊ भोज पुरी नवीनतम कविता बहुत प्यारी लगी, इस गर्मी के मोसम मै.
धन्यवाद
वाह वाह एक और अन्दाज अब तो मुझे भी भोज पुरी सीखनी पडेगी बधाई
पाती तो बड़ी छोटी लिखी आपने ,मगर घिउ अउर सरसों तनी एहरओ भिजवा दिहल जाई
परनाम